मोदी सरकार लगातार बैंको का विलय कर रही है। इसी कड़ी में वित्त मंत्रालय ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के चौथे चरण का विलय शुरू कर दिया है, जिससे 43 बैंकों की संख्या घटकर 28 हो जाएगी। बैंको का विलय करके ग्रामीण बैंकिंग को अधिक कुशल बनाना और ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग सेवाओं का लाभ पहुँचाना है। बैंको का विलय होने ग्रामीण विकास में तेजी लाने में मदद मिलेगी।
बैंको के विलय करने का उद्देश्य और लाभ
वित्तीय सेवा विभाग ने इस प्रक्रिया को ‘एक राज्य, एक आरआरबी’ के लक्ष्य के रूप में जरूरी बताया है। इसके जरिये ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों की संख्या भले ही घटाई जाए और उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि की जा सके। इस तरह से वे कम लागत में बेहतर सेवा दे पाएंगे। सकें।
RRB की संख्या 43 से घटकर 28
इस विलय प्रक्रिया की योजना को राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के साथ मिलकर तैयार किया गया है। इस तरह से RRB की संख्या 43 से घटकर 28 हो जाएगी। वित्तीय सेवा विभाग ने इसके लिए प्रायोजक बैंकों से सुझाव भी मांगे गए हैं। केंद्र सरकार ने 2004-05 में इस प्रकार का पहला समेकन शुरू किया था, जिससे RRB की संख्या 196 से घटकर 43 हो गई थी।
इन राज्यों में होंगे क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का विलय
इस विलय में आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान जैसे राज्यों के बैंको को शामिल किया जाएगा। इसमें आंध्र प्रदेश के सबसे ज्यादा चार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक हैं, वहीं उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में तीन-तीन बैंक हैं।
आरआरबी में हिस्सेदारी
आरआरबी की स्थापना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों, कृषि मजदूरों और छोटे कारीगरों को लोन और वित्तीय सेवाएं प्रदान करना था। इन सभी बैंकों में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत है, जबकि 35 प्रतिशत प्रायोजक बैंकों और 15 प्रतिशत राज्य सरकारों के पास है। वर्ष 2015 में हुए एक संशोधन के बाद, इन बैंकों को पूंजी जुटाने के लिए अन्य स्रोतों से भी निवेश का अवसर दिया गया।